ये बन्द कमरो की वीरनीया मुझे अवाज देती है,
कुछ लम्हे कुछ कहानिया मुझे ये राज देती है।।
अगर मैं लिखना चाहु मेहबूब के बारे मे कुछ।
ये मेरी कलम की नोक मुझे लिहाज देती है।।
आज के हालात या जुल्म की दास्ताँ लिखूं तो।
मेरी सियाही मेरी कलम मुझे आगाज देती है।।
इश्क़ की कोई प्रेम गाथा अगर जहन मे आये।
मेरे खयालो की झलक मुझे मिजाज देती है।।
किसी कोयल की अगर धुंन पडे मेरे कानो मे।
सूने अल्फाज़ो को ये कलम जैसे साज देती है।।
मत पुछो मुझ से! की क्या दर्द होता है लिखने का।
ये रात चीख्ती खामोशि से मुझे अल्फाज देती है।।
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