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सैनिक का आखिरी खत | PRIYANSHU BHAI

 सैनिक का आखिरी खत



मैं भारत का एक सिपाही हुँ, 

दुश्मनो के लिए मै त्राहि हुँ ,

मगर चले कभी मेरी अंतीम सांस,

टूट जाये जीने की आस ,

लपेट तिरंगे में मुझको 

पहुँचा देना मेरे मां के पास ...


मां अल्फाज मेरे मौन हो गये ,

पर संजोने वाली बात साथ लाया हुं ,

बहु ना लाया डोली में , 

पर देख पुरी बारात साथ लाया हुं।।


बेटा है उनका सेना में

इस बात पर रौब जमाते थे, 

आज उनकी आँखों में आंसु 

जो हर वक्त सिर्फ मुस्काते थे, 

बाबू जी मैं मरा नही

मैंने शहादत पाई है

जा कहना सबसे गाँव में 

मैंने सीने पे गोली खाई है ।।


जा कहना छोटे भाई से 

वादा मेरा निभायेगा 

सिर्फ एक सीना लुप्त हुआ 

दूजा बदला ले आयेगा ।।


वही होगी मेरी छोटी बहना ,

जा उस से तुम प्यार से कहना, 

तोहफा उसका याद था पर

कुछ यू इत्तेफाक हो गया ,

मां की सेवा करने में भाई 

राखी के पहले राख हो गया ।।


थोड़ा रूक जाना उस दरवाजे पर, 

कहना स्वागत करे डोल बाजे से, 

संग जिंदगी बिताने का 

हमने इरादा किया था, 

साथ जीने मरने का 

सच्चा वादा किया था, 

दिल अभी भी जूड़े हुए हैं 

जिस्मो का खेल छुट गया, 

मां का वादा निभाने में 

प्यार का वादा टूट गया ।।


अब मैं इन भटकती राहों में अंजान एक राही हूँ 

गर्व से कहता हूँ यारों भारत का एक सिपाही हूँ ।।



© प्रियांशु त्रिपाठी 

छात्र , विधि विभाग, 

दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 

गया , बिहार

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